गरीबी हटाओं बनाम गरीबी घटाओं
लोग मुझे अक्सर अजीज समझ लेते हैं
देखिए लोग धोखा गलत इंसान से खाते हैं
दियो आहाँ ध्यान बढियाँ सं, जखन आहाँ लिखी रहल छी
लड़की की जिंदगी/ कन्या भूर्ण हत्या
कोई एहसान उतार रही थी मेरी आंखें,
शून्य हो रही संवेदना को धरती पर फैलाओ
*कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को*
फर्क़ क्या पढ़ेगा अगर हम ही नहीं होगे तुमारी महफिल में
जैसा सोचा था वैसे ही मिला मुझे मे बेहतर की तलाश मे था और मुझ
कभी ख्यालों में मुझे तू सोचना अच्छा लगे अगर ।
अपने नियमों और प्राथमिकताओं को बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित क
पढ़ता भारतवर्ष है, गीता, वेद, पुराण