जो सृजन करता है वही विध्वंश भी कर सकता है, क्योंकि संभावना अ
संभालने को बहुत सी चीजें थीं मगर,
वो कौन थी जो बारिश में भींग रही थी
दिल तो है बस नाम का ,सब-कुछ करे दिमाग।
*आजादी अक्षुण्ण हो, प्रभु जी दो वरदान (कुंडलिया)*
चाँद बदन पर ग़म-ए-जुदाई लिखता है
अपने मां बाप की कद्र करते अगर
इस शहर से अब हम हो गए बेजार ।
महकती नहीं आजकल गुलाबों की कालिया
Ghazal
shahab uddin shah kannauji
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
" कौन मनायेगा बॉक्स ऑफिस पर दिवाली -फ़िल्मी लेख " ( भूल भूलेया 3 Vs सिंघम अगेन )
जब साथ छोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी
I want to collaborate with my lost pen,
स्वप्न और वास्तव: आदतों, अनुशासन और मानसिकता का खेल