।।मैं जिसको पूज रहा हूँ।।
मैं जिसको पूज रहा हूँ,
वह पत्थर पानी बनता है,
घूंट-घूंट में देता जीवन,
आशीष भवानी बनता है,
कालो में है महाकाल,
जिस पर धरती का भार टिका,
बना धुरी सर कंटक पर है,
जिस पर है आधार टिका,
प्राणों में है पुष्प पुंज,
स्व:तत्व स्वरूप का स्वामी है,
गंगा की धारा जिसने,
अपने ऊपर थामी है,
बैठ सिला पर रमा लिया,
धूनी की धुन में जिसने,
पांच तत्त्व का परमेश्वर,
इस जग का भोला भंडारी है,
स्व:रूप त्याग बना पत्थर,
और विपदा जग की टारी है,
स्व:रचित कविता सर्वाधिकार सुरक्षित (राजेंद्र सिंह)