।।बरसात।।
बरसात बन के गिरूँ,आ तेरे तन – बदन को भिगा दँ।
तेरे सोये अरमानों को पलभर में जगा दूँ।
पनाहों में आ ज़रा,तुझे अपने सीने से लगा लूँ।
तेरे सोये अरमानों को पलभर में जगा दूँ।।
पुलकित हो उठेगा अंग -अंग तेरा।
मेरे छुअन की एहसास से,और भी गाडा़ हो जाऐगा
तेरे लबों के गुलाबी रंग तेरा।
वारिशों का असर है या मेरी अदाओं का,
जो बदल रहा आज ये ढँग तेरा।
जल जाओगी तुम बेशुध होके,
आ आशिकी मेंं तुझमें मैं वो आग लगा दूँ।
तेरे सोये अरमानों को पलभर में जगा दूँ।
बरसात बन के गिरूँ,आ तेरे तन – बदन को भिगा दूँ।
तेरे सोये अरमानों को पलभर में जगा दूँ।।
ख्वाहिशों को न जाने कैसी तलब ये लगी
की जाम लबों पे छलकने लगा।
बर्फ की तरह तू भी मेरी बाँहों मेंं आके पिघलने लगी।
मचलने लगी सावन की तरह तुम,
बादल बन के मुझमें तू बरसने लगी।
तरसने लगी निगाहें मेरी,
आ मैं तुझे अपनी आंखों मे काजल की तरह सज़ा लूँ।
धक – धक धडकने लगेगा दिल ये तुम्हारा,
आ मेरी साँसों में तेरी साँसों को पनाह दूँ।
तेरे सोये अरमानों को पलभर में जगा दूँ।
बरसात बनके गिरूँ,आ तेरे तन-बदन को भिगा दूँ।
तेरे सोये अरमानों पलभर में जगा दूँ।।
••••• ••••• ••••• •••••
••••• ••••• ••••• •••••
स्वरचित् गीतकार,संगीतकार,
गायक व कवि – नागेन्द्र नाथ महतो
धन्यवाद्!
Copyrights:- Nagendra Nath mahto