️।। मेरी मुझसे इक पुकार ️।।
कुछ ऐसा हुआ नही,
पर न जाने कुछ हुआ सा है।
कुछ खास कहि जला नही कही
फिर भी कुछ बुझा बुझा सा है।
युही न फूल देख मुस्कुरा दिया कर,
कांटे को देख जो फूल से छिपा सा है।
कल तक मन जो नृत्यमय था,
आज फिर कहि मृत पड़ा सा है।
ये माया नगरी है साहब की,
यहां झुठ उजागर सच कहि दबा सा है।
सुख दुख सब पल के मेहमान,
इनके कारण तूने साहब को ही भुला दिया सा है।
वापिस आ जा अपने साहब नू,
बस इक इंतज़ार तेरी ही हां का है।