फ़ोन पर तो खैरियत ही कहेंगें
कभी पास आकर बैठो तो बतायें क्या है परेशानी
कभी सुनों और सुनाओ खुलकर..
बतियाओ ज़रा दो घड़ी कुछ सुख दुख की दो बात
मैसेज़ के बदले मैसेज तक सिमट गया संसार
मौन रिश्ते कैसे समझेंगें आपस के ज़ज़्बात
जब तक ना हो पाया साक्षात्कार
फोन पर तो हम सब खैरियत ही कहेंगें…
कभी पूछो खुलकर तो बतायें और सुलझायें
कुछ हम अपनी कुछ तुम अपनी
रिश्ते असल में दम तोड़ रहे सो
मोबाइल तक ही सीमित रह गया
अब हम सबका सरोकार
अंगुलियों से ही निभ रहे रिश्ते,रहा न कोई व्यवहार
क्यों न मिलकर बैठें समझें एक दूजे को
कर लें दो टूक बात..बह जाने दो ज़ज़्बात..
फोन पर तो हम सब ख़ैरियत ही कहेंगें….
वहटसपप, फेसबुक पर हैं दोस्त बहुत
दावा करते इस भीड़ में अपने हैं बहुत
कौन है अपना कौन पराया
जीवन में ज़रा मुसीबत आये तो जाने
आँखों के आँसू कोई पहचाने तो ये दिल भी माने
मोबाइल के रिश्ते चेहरा पढना क्या जानें
कभी बतियाओ दो घड़ी सुख दुख की दो बात
दूर हों जायें कुछ गलतफहमियां..कुछ परेशानियां..
फ़ोन पर तो हम सब खैरियत ही कहेंगें..
© ® अनुजा कौशिक