फ़िदा हो गए
******* फ़िदा हो गए (ग़ज़ल) *******
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जब जवां दिल एक दूजे पर फ़िदा हो गए,
तब लगे पानी हवा भी जुदा हो गए।
जान पर ही खेल पाया था पिया सांवरा,
हमनशीं अब जो हमारे खुदा हो गए।
कुछ पता ही है नहीं क्यों ढूंढती है नज़र,
क्यों खफ़ा हो कर सजन यूं विदा हो गए।
सीखता है कौन पंछी जो सबक यूं यहाँ,
ठोकरें खा कर परिंदे फुर सदा हो गए।
यार मनसीरत कहे है खुशनुमा ये जहां,
मद्यशाला भी यहां अब बुतकदा हो गए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)