फ़र्क
सूऱत और सीऱत में क्या फर्क है ग़र हम पहचान पाते । न आते खूब़सूरत निग़ाहों के धोखे में ग़र उनकी नीयत हम जान पाते ।
ना खाते फरेब उनकी कातिल अदाओं का।
ना पालते ग़म उनसे इस कदर जुदा होने का।
ना भटकते उनके हसीन ग़ेसुओं के सऱाबों में।
ना उलझते इस तरह उनके बुने जालों में।
उनकी हस्ती सँवारने मे हम अपनी हस्ती तक मिटा बैठे।
ठोकर जब खायी तब आँँख खुली और इल्म हुआ हम ये क्या कर बैठे।