फ़रेब
जीवन चक्र विसात पर, रहे नही खुशहाल।
ऐसा मनुज नराधमी, चले फरेबी चाल।।
चले फरेबी चाल, मंद मंद मुस्काय।
मोल तोल व्यापार, अपनी अकल लगाय।।
कहे चिद्रूप कविराय, करें अब किसका चिंतन।
कितना सस्ता हुआ यह, अनमोल सा जीवन।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २२/०२/२०२१)