ज़िन्दगी
ऐ ज़िन्दगी तुझसे शिक़ायत हो गयी है
फिर भी तुझे जीने की सी आदत हो गयी है।
गिले शिखवे तो बहुत है, ज़िंदगी मे
इन्हें छुपाने की सी आदत भी अब हो गयी है।
आंधियों में भी चिराग़ को जलने की आदत सी हो गयी है।
तेज़ तूफानों में नौका को
किनारों में पहुँचने की सी आदत हो गयी है।
कांटो में रहकर फूलों को भी
मुस्कुराने की सी आदत हो गयी है।
लबों की मुस्कुराहट में
गमों के प्याले को छुपाने की सी आदत अब हो गयी है।
इंसानो की रूह को भी पल पल मरने
और जीवित होने की सी आदत अब हो गयी है।
इंसानो को भी,बदलते मौसम की तरह
बदलने की सी आदत हो गयी है।
क्षणिक भर ही सही,नुसर्त (विजय) के लिए सूरज और बादल को भी खेलने की सी आदत हो गयी है।
शिकायत मे भी तुझे जीने की सी आदत हो गयी है
ख़लिश में भी मुस्कुराने की सी आदत हो गयी है
भूपेंद्र रावत
11।01।2017