((( ज़िन्दगी – एक क्लास )))
एहसास ज़िन्दगी है और ज़िन्दगी है एहसास ,
बिगड़ते सवारते हालातो को सिखाती एक क्लास.
हर रोज़ कुछ नया किस्सा लिख जाती है जो पन्नों पे,
किताब सी ये ज़िन्दगी है बहुत खास।
खुशियों की बारिश में अपनों का साथ,
गम के बादल में उन्हीं अपनों का उपहास।
भीड़ में खोजते रहते हम जाने पहचाने चेहरों को,
जैसे पतझड़ में सब पेड़ पौधे करते बसंत की आस.
जलती धूप सी परेशानियां है कभी आग है सांसों में,
कभी मस्ती का आनदं है जैसे बरसता हो रास ।
कितने ही राज़ लिए फिरती है ये अनजाने राहों पर,
कहीं अनजाने रिश्तों से दिलाती है सदियों का विस्वास।
कभी सत्य कभी झूठ,कभी निराश कभी उल्लास,
हर पल चलना सिखाती वो जैसे हो एक माँ का हाथ।
हँसते हुए भी रुलाया इसने,कभी रोते हुए भी हँसा दिया,
जो कभी दोस्त थे वो दुश्मन बने,कभी दुश्मन आये पास।
कभी छोड़ देते थे थाली में अन्न,कभी खाली रही थाली ,
ज़िन्दगी ने कभी सरताज बनाया,कभी पाई पाई का मोहताज़,,
किसी लम्हें ने ठोकर देकर तोड़ दिया,किसी लम्हे ने खुद से नाता जोड़ दिया,
कभी महफ़िल में तन्हा चीखे,कभी तन्हाई में जिये हो के बिंदास,,
कभी हिम्मत की आहट,कभी ज़िम्मेदारी की शुरुवात,
हर पल जी लो ज़िन्दगी अपनी,ज़िन्दगी कुछ नही सिर्फ है एक एहसास,सिर्फ है एक एहसास।