ज़िन्दगी
दूर तक फैली रेत की चादर
सूरज को निगल रहा समंद्र
नभ धरा पर छाया
लालिमा का पहरा
और तुम….
तुम लहर बन कर आओगी
मेरा तन मन भिगोने
कभी तेज़, बहुत बहुत तेज़
कभी मद्धम भी…
अपने साथ ले आओगी
ढेरों सीपियाँ और पत्थर
लाल ,पीले, नीले पत्थर
कुछ बेरंग भी…
कुछ को तो मैं
रख लूंगा अपने पास,
बाकी हो सके तो
ले जाना तुम अपने साथ….
फिर तुम अपनी
काली स्याह जुल्फें
मेरे चेहरे पर गिराकर
नया कोई गीत गुनगुनाओगी
नगमा कोई सुनाओगी…..
एक गुज़ारिश है तुमसे
तुम मुझे भी
जरूर सुनना,
रेत पर उकेरूँगा
कोई अफसाना,
बनाऊंगा एक छोटा सा घरौंदा
तुम उसका भी ख्याल रखना ।।
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