ज़िन्दगी
ग़ज़ल
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सीखे तुझी से जीने के अंदाज़ ज़िन्दगी
लेकिन न जान पाये तेरे राज़ ज़िन्दगी
सुख दुख की ताल पर सजा इक साज़ ज़िन्दगी
सांसों की डोर की रही मोहताज़ ज़िन्दगी
हमने वफ़ा निभाने में छोड़ी नहीं कसर
आई न बेवफाई से पर बाज़ ज़िन्दगी
हमको सता ले ,दर्द दे तू जितने भी यहाँ
हमने सदा ही तुझपे किया नाज़ ज़िन्दगी
देती हमें बहुत है मगर छीनती भी है
सब पर गिराती रहती बड़े गाज़ ज़िन्दगी
हो जाती एक बार जो खामोश ‘अर्चना’
फिर लौट कर न देती है आवाज़ ज़िन्दगी
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
लगती कभी है आँसू कभी ताज ज़िन्दगी
भरती पतंग सी रही परवाज़ ज़िन्दगी
घर हो ,सड़क हो या चले जाओ विदेशों में
महफूज़ ही नहीं है कहीं आज ज़िन्दगी
20-02-2019