ज़िन्दगी से दूर कितना भी हटा देना हमें
ज़िन्दगी से दूर कितना भी हटा देना हमें
पर नहीं आसान यादों से विदा देना हमें
जब हमारी जीत में ही बस तुम्हारी जीत थी
क्यों गँवारा हो गया तुमको हरा देना हमें
माना हम पाषाण हैं पर टूटने देना नहीं
कोई कड़वी बात कह कर ही रुला देना हमें
जो दिये उपहार में थे तुमने ही हमको कभी
तोड़ कर वो सारे सपने मत सज़ा देना हमें
ले चले हो हाथ पकड़े प्रेम की हमको डगर
पर विरह का पाठ कोई मत पढ़ा देना हमें
‘अर्चना’ हम तो तुम्हें हरगिज भुला सकते नहीं
हो सके तुमसे अगरचे तो भुला देना हमें
22-04-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद