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19 Nov 2017 · 1 min read

ज़िन्दगी जलती हुई सिगार बनकर रह गयी

ज़िन्दगी जलती हुई सिगार बनकर रह गयी
लोगों के हाथों में दम की शिकार बन कर रह गयी
धुँआ बन,हवा में घुल, राख बन
चंद क्षणों की मेहमान बनकर रह गयी

इंसानो की बस्ती में हैवान बनकर रह गयी
गरीबों की बस्ती में भगवान बनकर रह गयी
ख़ातून की तरह गुलाम बनाकर रह गयी
ज़िन्दगी एक इंतकाम बनकर रह गयी

बिखरे पन्नो की किताब बनकर रह गयी
अनगिनत हिसाब बनकर रह गयी
छिपे हुए राज़ बनकर रह गयी
महज़ एक अनकही बात बनकर रह गयी

कभी सैलाब बनकर रह गयी
कभी हिज़ाब बनकर रह गयी
चार दिन के मेहमान ज़िन्दगी
आज गुलाम बनकर रह गयी

भूपेंद्र रावत
12।11।2017

Language: Hindi
1 Like · 342 Views

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