ज़िन्दगी जलती हुई सिगार बनकर रह गयी
ज़िन्दगी जलती हुई सिगार बनकर रह गयी
लोगों के हाथों में दम की शिकार बन कर रह गयी
धुँआ बन,हवा में घुल, राख बन
चंद क्षणों की मेहमान बनकर रह गयी
इंसानो की बस्ती में हैवान बनकर रह गयी
गरीबों की बस्ती में भगवान बनकर रह गयी
ख़ातून की तरह गुलाम बनाकर रह गयी
ज़िन्दगी एक इंतकाम बनकर रह गयी
बिखरे पन्नो की किताब बनकर रह गयी
अनगिनत हिसाब बनकर रह गयी
छिपे हुए राज़ बनकर रह गयी
महज़ एक अनकही बात बनकर रह गयी
कभी सैलाब बनकर रह गयी
कभी हिज़ाब बनकर रह गयी
चार दिन के मेहमान ज़िन्दगी
आज गुलाम बनकर रह गयी
भूपेंद्र रावत
12।11।2017