ज़िन्दगी को मनाओ खुशी की तरह— गज़ल
ज़िन्दगी को मनाओ खुशी की तरह
झेलो’ गम को जरा दिल्लगी की तरह
कुछ इनायते’ मिली कुछ जलालत सही
वक्त आया गया रोशनी की तरह
रोज चलता रहा बोझ ढोता रहा
और तपता रहा दुपहरी की तरह
उसके’ दिल मे तो’ विष ही भरा होता’ है
बात होती मगर चाश्नी की तरह
ज़िन्दगी गांव मे औरतों की भी क्या
मर्द पीटे उसे ओखली की तरह
वादा अच्छे दिनों का कहाँ खो गया
लोग भूखे दुखी भुखमरी की तरह्
गांव के दूध का स्वाद भी याद है
अब न मिट्टी की’ उस काढनी की तरह
वक्त की मार सहते हुये जी लिया
रोज बजता रहा ढोलकी की तरह
जान बच्चे हैं’ मेरी वो ही ज़िन्दगी
वो सहारा मे’रा हैं छडी की तरह्