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16 Oct 2020 · 1 min read

ज़िन्दगी का क़ाफ़िला हूँ

ज़िन्दगी का क़ाफ़िला हूँ
मैं अज़ल से चल रहा हूँ

जिस्म माटी जानता हूँ
फ़िर अना में जी रहा हूँ

जबकि पत्थर का बना हूँ
लोग कहते आइना हूँ

मुझमें हैं लम्हों की नदियाँ
मैं समुन्दर वक़्त का हूँ

जो पहुंचता मंज़िलों पर
वो मुसलसल रास्ता हूँ

ग़म ज़माने से मिले जो
उन ग़मों की इक रिदा हूँ

इश्क़ की आतिश में यारों
बारहा मैं भी जला हूँ

देखकर उनकी उड़ानें
मैं बलन्दी पा गया हूँ

दूर भी ‘आनन्द’ का था
पास में ‘आनन्द’ का हूँ

शब्दार्थ:- अज़ल=beginning/eternity/अनादिकाल/वह समय जब सृष्टि की रचना हुई/आदिकाल

– डॉ आनन्द किशोर

1 Like · 1 Comment · 179 Views
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