ज़िन्दगी एक सवाल
ज़िन्दगी एक सवाल बन जाती है
हर कदम पर एक इम्तहाँ बन जाती है
लावारिस लाश सी है ज़िन्दगी
जितना कोशिश करो सुलझाने की
उतनी और उलझती जाती है।
आइना भी धुंधला हो जाता है,समय के साथ
शक्ल में भी धुंधली काई सी चढ़ जाती है।
मश्क्कत करनी पड़ती है, अक्सर
खुद को सवांरने में,बेइंतहा
ज़िन्दगी भी कम पड़ जाती है
लगा रहता हूँ,दूसरों को मनाने की कोशिश में अक्सर
ज़िन्दगी भी खुद से दूर होती सी नझर आती है।
बैठ जाता हूं अक्सर, थककर
आशियाने में चंद सुकूँ की तलाश में। लेकिन
घिरा पाता हूं, खुद को ज़िन्दगी के जंजाल में।
जहां जब चाहे हँस लिया करते थे ,कभी बेवजह
आज ज़िन्दगी भी अब हंसने के अवसर और
बहाने ढूंढती नझर आती है।
बिक जाती है ज़िन्दगी अक्सर
इम्तिहानों में , खुद को साबित करते करते
अब रूह भी घुट घुट कर मरती जाती है।
भूपेन्द्र रावत
10।01।2017