ज़िंदगी
जब कभी यह ज़िन्दगी बेचैन सी होने लगे
करुण रस में हास्य रस का बीज यह बोने लगे
कल्पना के जगत् में भी बात सच कहने लगे
मधुशाला में भी हँसकर हँसाकर खुद वह जब रोने लगे
समय की नब्ज को छूना,समझना
दिल में किसी के घर बनाकर हास्य का संचार करना
संवेदना को रक्त के रंगों में ही तुम लाल करना
संस्कार की पीली हथेली पर जगत् की लाज रखना।
~~~अनिल कुमार मिश्र,प्रकाशित
हज़ारीबाग़,झारखण्ड
9576729809