ज़िंदगी
हर पल बदलती है रंग ज़िंदगी ,
कभी मस़र्रत की सहर ,
तो कभी ग़म की शाम लगती है ज़िंदगी ,
कभी रूठती ग़मगीन ,
तो कभी खुशियों से बाँहों में भर लेती है ज़िंदगी ,
कभी मंज़िल- दर- मंजिल हासिल ,
तो कभी अनजान राहों में भटकती सी लगती है ज़िंदगी ,
कभी रवाँ दवाँ बहारों का काफिला ,
तो कभी पतझड़ की टूटी शाख सी लगती है ज़िंदगी ,
कभी रोशन सुबह ,
तो कभी तीरग़ी में डूबी शब़ सी लगती है ज़िंदगी ,
कभी ईफ़ा-ए-अ’हद ,
तो कभी अ’हद -ए-फरामोश सी लगती है ज़िंदगी ,
फिर भी इस दौर-ए- अय्याम में ,
वसूक़ जगाती सी है ज़िंदगी ,