ज़िंदगी
करते हैं शिक़वे शिकायतें सभी उम्र भर
फिर भी कितनी गुलज़ार है ये ज़िंदगी
शुक्रगुज़ार हैं दो रोज़ा जीस्त के हम सभी
वक़्त की कैद से आजाद नहीं है ये ज़िंदगी
है लम्हे अंधेरे के तो कभी उजाले का साथ
साथ वक़्त के कितनी हसीं है ये ज़िंदगी
देना पड़ता है इम्तेहान हर लम्हा इंसान को
वक़्त के नाजुक धागे से बंधी है ये ज़िंदगी
नहीं समझ पाया है कोई फ़लसफ़ा इसका
अनसुलझी पहेली ही ‘ सुधीर ‘ है ये ज़िंदगी…….