ज़िंदगी दो चौराहों पर
अजीब सी ज़िंदगी है आजकल दो चौराहों पर
जहाँ से आठ रास्ते जाते हैं अलग अलग राहों पर ,
कहाँ जाये कौन सा रास्ता चुनें समझ से बाहर
भ्रमित हो गई है अकल आकर इन चौराहों पर ,
कितना आसान होता था पहले रास्ता चुनना
अब तो पड़ता है कठिन राहों से गुज़रना ,
जैसे बचपन में इना मीना माइना मो करते थे
और उस पार्टनर को निकाल दिया करते थे ,
कितना आसानी से पल में फैसला कर जाते थे
झट उसको मान कर एतराज नही करते थे ,
इन राहों ने मन को बहुत ज्यादा उलझा दिया है
अपने लिए फैसलों पर मन को भरमा दिया है ,
पहले क्या कम दिक्कतें थी एक चौराहे पर
जो अब खड़ा कर दिया है जिंदगी दो चौराहों पर ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 06/11/2020 )