ज़िंदगी जब तुझे नज़दीक से देखा मैंने !
ज़िंदगी जब तुझे नज़दीक से देखा मैंने !
एक धुंधली सी तस्वीर नज़र आयी मुझे,
जैसे चलते हुए मुसाफिर को,
राह में दिख रही हो परछाईं,
राज गहरा है समझना मुश्किल,
ढूंढता है की वशर शमो सहर जिस शै को,
वो ख्वाबगाह है एक ताजमहल के जैसी,
जहाँ मिलती है दर हकीकत में,
एक खोई हुई सी वीरानी,
इससे भूली हुई शमशानी हकीकत ही पाया मैंने,
ज़िन्दगी जब तुझे नज़दीक से देखा मैंने !!!