ज़िंदगी का खेल
बहुत अजीब ही सही मग़र ज़िंदगी एक ऐसा खेल है,
कभी धक्का खाती गाड़ी तो कभी दौड़ती रेल है।
इस खेल में मैं ही कप्तान और मैं ही खिलाड़ी हूँ।
कभी लगता है मैं हरफनमौला हूँ तो कभी लगता है मैं अनाड़ी हूँ।
मेरे ही फैसले मुझको ही हैं मानने,
सारे उसूल और कायदे मुझको ही हैं जानने।
-?️?️संघप्रिय गौतम™