ज़हर-ऐ-गम पी कर जिने का दम रख्खा हैं मगर तेरी यादो ने आँखों को नम रख्खा हैं
ज़हर-ऐ-गम पी कर जिने का दम रख्खा हैं
मगर तेरी यादो ने आँखों को नम रख्खा हैं
ज़फ़ा कर वफ़ा कर या मुझे कत्ल कर,मगर
तेरे नाम का दिया दिवार पर सनम रख्खा हैं
अहसास ज़ुदा ज़ुदा फ़क़्त अश्कबार रहते हैं
ज़ुदा होकर तुमसे दिल में दर्द-ऐ-गम रख्खा हैं
हमे कत्ल कर,हमी को मुज़रिम ठहरा देंगे वो
इन रहनुमाओ ने इतना कर सितम रख्खा हैं
कागज़ लहु में तर कर दास्ता हैं तहरीर करते
फ़लाँ पुछते हैं कैसे ज़ोर-ऐ-कलम रख्खा हैं