ज़रूरी नहीं कि वे सुखी होंगे।
ज़रूरी नहीं कि वो गुरू हैं तो सुखी ही होंगे, ज़रुरी नहीं की गाड़ी है, बंगला है, नाम है और शौहरत भी और वो खुश होगा, ज़रूरी ये भी नहीं कि हमें उसका ऐसो-आराम दिख रहा है, अनेक नौकर-चाकर सेवाकर्मी हैं और वो खुश हो, खुशी का सम्बंध इन समस्त भौतिक आवरण से नहीं हो सकता उसके लिए मन प्रसन्न होना चहिये मन का चित्त मन का आवेग ऐसा हो चाहे कितनी भी पीड़ा हो यद्यपि कितने ही दुखों का पहाड़ हो तुम सदा की भाँति साधारण रहो बिल्कुल साधारण ऐसा करने से तुम्हारी अवचेतन की धारणा को बल मिलेगा तुम बेहतर जीने की राह खुद बना सकोगे, जब कभी ऐसा होगा तब तुम कभी दुखी नहीं हो सकते।