ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला है
ये झूठ शीध्र ही सच में बदलने वाला है
सबूत लेके जो आया वो छलने वाला है
ये काली रात अँधेरी है मानती हूँ पर
ज़रा सी देर में सूरज निकलने वाला है
नज़र हरेक ही काशी की ओर ठहरी है
वहाँ नसीब का सिक्का उछलने वाला है
गुमान होता है चेहरे को देख कर उसके
हमारी जीत पे वो भी मचलने वाला है
रखी है शान बना के यहाँ तो संतो ने
ये फ़ैसला नहीं अब और टलने वाला है
हवाएं देख के होता है यह यक़ीं सुधाअब
कमल दिलो में सभी के ही खिलने वाला है
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी,स्वरचित
26/5/2022