ज़माने तेरी मिह्रबानी नहीं हूँ
शजर हूँ, तिही इत्रदानी नहीं हूँ
चमन का हूँ गुल मर्तबानी नहीं हूँ
ख़रा हूँ कभी भी मुझे आज़मा लो
उतर जाने वाला मैं पानी नहीं हूँ
ग़ज़ल हूँ, वही जो लबों पर है सबके
किताबों में खोई कहानी नहीं हूँ
मुझे याद रखना है आसान यूँ भी
हक़ीक़त हूँ झूठी बयानी नहीं हूँ
मैं ग़ाफ़िल हूँ गर तो है मर्ज़ी मेरी ही
ज़माने तेरी मिह्रबानी नहीं हूँ
-‘ग़ाफ़िल’