ग़ज़ल II हमनजर हो जाइए या हमसफ़र हो जाइए
हमनजर हो जाइए या हमसफ़र हो जाइए…
आज हमसे मिल के अब शाम-ओ-सहर हो जाइए…
तेरे बिन चारों तरफ कैसा अँधेरा छा गया…
इस अँधेरी रात में आ दोपहर हो जाइए…
तू गया तड़पा हूँ तबसे तेरी बाँहों के लिए…
जो भरे आघोष में ऐसी लहर हो जाइए…
या बसा दे ये जहाँ आकर के मेरे पास में…
छीन ले या जिन्दगी ऐसा कहर हो जाइए…
-सोनित