ग़ज़ल
उद्योग हो, भरोसा’ भी बेहद, अथाह हो
मंजिल मिले उसी को’ सबल जिनमे’ चाह हो |
इंसान की स्वतन्त्र, इबादत की’ राह हो
इंसान के प्रकाश, ज्यों’ उजली निगाह हो |
इंसान है समान, खुदा की निगाह में
धनवान हो, गरीब हो’,या बादशाह हो |
हर काम में सलाह लिया सब रकीब से
जनता अगर सलाह दे’ तो क्या गुनाह हो ?
कानून तोड़कर को’ई’ बचते नहीं मगर
पोलिश वही गुनाह का’ पुख्ता गवाह हो |
निर्दोष वो कतील थे’ हक़ चाहते थे’ वे
खुद सोचते हो’ आसमां’, खुर्शीद-ओ-माह हो |
हाकिम जहाँ बे’ दर्द हो’ इन्साफ क्या मिले
सबको सज़ा-ए-मौत, भले बेगुनाह हो |
कालीपद ‘प्रसाद’