ग़ज़ल
जरा चाँद पर से ये बादल हटाओ
सुनो जान अपना ये घूँघट उठाओ।
मैखाना-ए-उलफ़त ये आँखें तुम्हारी
मिरा रिंद दिल है तो जमकर पिलाओ।
चमन इस जहाँ के हैं शादाब तुमसे
कली कह रहीं तुम जरा मुस्कुराओ।
दिवाना मरा है वो फिर जी उठेगा
जरा प्यार से तुम जो उसको बुलाओ।
कभी तो मिलो आसमाँ से उतर कर
हमारी सुनो कुछ तुम्हारी सुनाओ।
तुम्हारा ही घर है सनम दिल हमारा
रहो इसमें तुम या तो इसको जलाओ।
तुम्हारा “सचिन” है तुम्हारी ग़जल है
कभी प्यार से तुम जरा गुनगुनाओ।
सचिन नेमा
गाडरवारा(म.प्र)