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29 Apr 2017 · 1 min read

ग़ज़ल

कोई साज़ है न सुरूर है
ये सज़ा किसे मंज़ूर है

कुछ पास है कुछ दूर है
प्यार कितना मजबूर है

रात पकाएगी अब रोटी
चांदनी का तंदूर है

बर्तन करते रोज़ लड़ाई
मसअला ये मशहूर है

ख्वाब कहाँ से लाओगे
बिस्तर तो नर्म ज़रूर है

तोड़ दिया पैमाना देखो
चांदनी नशे में चूर है

अफसर कबाब खाएंगे
सैलाब का तंदूर है

नूरे-महफ़िल है चांदनी
सूरज तो मज़दूर है

शाम उदासी ले कर आई
जामे – खला मामूर है

गाओ गीत कोई “एहसास”
अभी सुबह कुछ दूर है
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++

जामे-खला = एकांत रुपी प्याला,मामूर = भरा हुआ

1 Like · 1 Comment · 449 Views
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