ग़ज़ल
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दुश्मनी भी न हम से निभाई गई।
ये नज़र जब नज़र से मिलाई गई।
चाक हैं दिल-जिगर नैन में नीर है।
दिल्लगी ना किसी से बताई गई।
मैं सलाई चला बुन चुकी ख़्वाब जो।
आँख खुलते कहाँ ये बुनाई गई।
चोट दे-दे के सब बन रहे रहनुमां।
ए ख़ुदा तेरी कितको खुदाई गई।
रूह तक ज़ख्म का सिलसिला देखिए।
पर दवा भी न कोई लगाई गई।
प्यास से जान मेरी चली जा रही।
अंजुरी भर न उनसे पिलाई गई।
‘तेज’ सुर में कोई तो ग़ज़ल अब कहो।
जो न महफ़िल में अब तक सुनाई गई।
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© तेजवीर सिंह ‘तेज’