ग़ज़ल
दोस्तों एक ताज़ा तरीन ग़ज़ल आपकी अदालत में रख रहा हूँ।ग़ौर फरमाएं~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ज़िंदगी में यही छोटा ग़ुनाह कर बैठे
इश्क़ हम पत्थरों से बे पनाह कर बैठे
कोई कुछ भी कहे ये मेरी सादगी ही थी
एक कातिल से रहनुमा की चाह कर बैठे
जिसकी नज़रों में थे खंज़र, लवों पे ख़ामोशी
उसी नक़ाब पे हम वाह वाह कर बैठे
बड़ा हसीन नज़ारा ज़नाब था देखो
देखते देखते ख़ुद को तवाह कर बैठे
लगा था हाथ में जिसके लहू परिंदों का
उसे इंसाफ़ के घर में गवाह कर बैठे
मेरी उन चन्द गलतियों का खामियाजा है
ख़ुद गुनहगार ,उसको बे ग़ुनाह कर बैठे
~~?~~~?~~~~?~~~~?~~? ” सुधीर मिश्र”
11/01/2017~~~~7906958114