ग़ज़ल
सभी की ज़िंदगानी का बड़ा छोटा फ़साना है
अचानक से चले आये अचानक लौट जाना है
कहानी लिख तो दूँ लेकिन वही किरदार लाज़िम है
जिसे अपनी कहानी में मुझे सबसे छुपाना है
सभी कुछ ले चले हो तुम यही तरकीब दे जाओ
किसे कब याद रखना है किसे कब भूल जाना है
समझते थे सभी कुछ पर यही इक बात ना समझे
उसी से दूर रहते हैं जिसे नज़दीक लाना है
लिखा है क़िस्मतों में जो नहीं मुमकिन बदलना वो
किसी की रुख़्सती तय है किसी को लौट आना है
हथेली पर मिरी तुमने लिखा था जो बहाने से
कभी करके बहाना सा इसे भी अब मिटाना है
अधूरा सा वो क़िस्सा जो किसी का एक पल था औ’
किसी की उम्र पर भारी वो पल भर का फ़साना है
सुरेखा कादियान ‘सृजना’