ग़ज़ल
भले ये तुम्हारी रिवायत नहीं
मुहब्बत में मेरी मिलावट नहीं
ज़माने को होगी ज़रूरत भले
मुझे अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं
लिखा है वही जो हमें सच दिखा
हमें झूठ लिखने की आदत नहीं
सफ़र में मिले हैं कईं हमसफ़र
बिना इनके बनती है दौलत नहीं
हर एक शख़्श है ग़मज़दा सा यहाँ
किसी चेहरे पर भी मसर्रत नहीं
हम अपनी ही मर्जी के राजा कमल
चलेगी यूँ हमपे हुकूमत नहीं