दर्द-ऐ-दिल किसको सुनाऊँँ मैं।
दोस्तो,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले !!!!!
ग़ज़ल
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दर्द-ऐ-दिल, किस’को सुनाऊँ मैं
गुजर रहे है दिन,,कैसे बताऊँ मैं,
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तन्हाइयों से तंग आ गया जनाब,
हर बात, अब कैसे समझाऊँ मैं।
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मजे लोग लेगे ये सोच चुप रहता,
खुद का दिल खुद से बहलाऊँ मैं।
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दुनिया मे मुझे गम,सभी ने दिऐ है
इल्जाम अब ये किस पे लगाऊँ मैं।
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कुरेद रहे है जख़्म जो बारबार मेरे
बेरहम जख्मो को कैसे दिखाऊँ मैं।
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खुश है देख मुसीबत मे रक़ीब मेरे
उनसे बताऐं कैसे प्यार निभाऊँ मैं।
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मायने:-
रक़ीब:- प्रतिद्वंद्वी
शायर :-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”