ग़ज़ल
******** माँ ********
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किस मिट्टी की बनाई माँ,
हर मर्ज़ की दवाई माँ।
सीने है जिन्हे लगाती वो,
करते बेटे पराई माँ।
आँचल माँ का निराला है,
सारी खुशियाँ समाई माँ,
गम खा कर मनाती झट,
रूठी जो ना मनाई माँ,
परबत सी पीर सहती है,
रहती पीड़ा छिपाई माँ,
विपदा में हैं बुलाते सब,
दो पल भी ना बुलाई माँ।
मनसीरत बाल ना बांका,
होती गर्म सी रज़ाई माँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)