ग़ज़ल
सुना है आजकल, उनके अय्यार बहुत हैं,
करने को हम पे वार, जो तैयार बहुत हैं।
सुनी थी सूनी रात में, सरगोशियाँ कई,
हो सका न सामना, वो बेजार बहुत हैं।
देखी न गई खुशियाँ, चंद पलों की भी,
तभी तो आजकल हम, बीमार बहुत हैं।
पहचान न सके, मौका परस्ती को उनकी,
ऐसा लगा हमको,वो मिलनसार बहुत हैं।
दिल में ज़फा,आँखों में नफ़रत का समंदर,
हमको यूँ लगा कि जैसे,वो दिलदार बहुत हैं।
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-Gn✍