ग़ज़ल /
मुझे आज तुझसे पड़ा काम साकी ।
तेरे हाथ में है मेरा ज़ाम साकी ।
न यारों , न महबूब और न किसी के,
तेरे नाम होगी मेरी शाम साकी ।
मै बदनाम होके बनूँ नामवर – सा,
अगर लेगा तू जो , मेरा नाम साकी ।
तू चाहे तो थोड़ी सी इज़्ज़त मिलेगी,
वगरना हूँ अब तक मैं बदनाम साकी ।
चढ़ा जो नशा , फिर उतरता नहीं है,
ये मस्तों की मस्ती का पैगाम साकी ।
कि अल्लाह,’ईश्वर’,पयम्बर कि ख़ुद में,
वो रहता इन्हीं में है गुमनाम साकी ।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।