ग़ज़ल
मेरी हसरत ” –
क़ायनात के हर ज़र्रे से प्यार है ।
चमन को बागबां का इंतज़ार है ।।
ये वतन तो है अमन का मरकज़ ।
फ़िर क्यूँ इंसाँ – इंसाँ में तक़रार है ।।
प्यार बाँटते तो अच्छा होता मगर ।
दिलों में सबके नफ़रतें बेशुमार है ।।
वो तेरा मंदिर , ये मेरी मस्जिद ।
रोक रही मिलने से ,कैसी दीवार है ।।
इंसानियत रो रही हाल पर अपने ।
है अनसुलझी पहेली, इसमें असरार है ।।
सोच रखते सेहतमंद तो सुधरते हालात ।
ज़ेहन ओ क़ल्ब से तो यहां सब बीमार है ।।
“काज़ी” ये फ़ित्ने मिट जायेंगे एक दिन ।
बस इंसाँ को सच्चे इल्म की दरक़ार है ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ” शाइर ”
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 ,अहिल्या पल्टन ,इक़बाल कालोनी
इंदौर ,जिला – इंदौर ,मध्यप्रदेश