ग़ज़ल
दर्द में हाथ छुड़ाये हुए लोग हैं
उस ख़ुदा के मिलाये हुए लोग हैं
जीने का हर हुनर जानते हैं वो जो
ज़िंदगी के सताये हुए लोग हैं
याद अब उम्र भर आयेंगें ये तुम्हें
क़ुर्बतों में भुलाये हुए लोग हैं
सब उजड़ जायेंगें कल सहर होते ही
एक रात के बसाये हुए लोग हैं
ओस की बूँद सी दे रहे हैं छुअन
हिज़्र के जो जलाये हुए लोग हैं
सुरेखा कादियान ‘सृजना’