ग़ज़ल
पेट को चाहिए खाद्य, नारा नहीं
पेट जितने से भर जाय, सारा नही |
भावना की कमी, जाँचना चाहिए
भूखो को चाहिए खाना,चारा नहीं |
सारे रिश्ते बिगड़ते हैं, तकरार से
शत्रुवत और हो जाता, यारा नहीं |
बात है कर्ण प्रिय,’आयगा अच्छा दिन”
अब किसी को भी यह, लगता प्यारा नहीं |
देख कर ठण्ड वातावरण क्या कहें
पी गए मय मधुर किन्तु प्यारा नहीं |
सिन्धु जल मेघ बन फिर बरसता कहीं
वह अमृत वारि मीठा है खारा नहीं |
© कालीपद ‘प्रसाद’