ग़ज़ल
नियति नये वर्ष की
फिर यहां नयी आशाओं का जनम होगा।
फिर यहाँ साल भर ‚ सिर धुनेगा आदमी।
पुराने आकाश का रंग चाहे फिर से नया होगा।
दर्द और आँसू ‚ वर्ष भर फिर चुनेगा आदमी।
सूरज की रौशनी से चाहे प्राची पुनः चमकेगा।
वर्ष भर पर‚ अँधेरे में फिर जियेगा आदमी।
मानव की रक्षा को मानव संकल्प पुुनः पुुनः लेगा।
रक्त मानव का ही‚वर्ष भर पीता रहेगा आदमी।
संर्घषों को नया जोश‚नयी शक्ति ंिमलेगी फिर।
पराजय ही वर्ष भर पर‚फिर जियेगा आदमी।
फिर यहाँ हर्ष और हास को ‘आतिश’ होगा।
दीपों को चिताओं पर पर‚ फिर चिनेगा आदमी।
फिर यहाँ नये वर्ष का वास विश्व में होगा।
फिर यहाँ सालभर अंगुलियाँ गिनेगा आदमी।
यह नया साल बख्शीश में मिला है आदमी को
गये सालों की तरह‚ रद्दी इसे फिर लिखेगा आदमी।
वर्ष के पैरों में महावर‚ हाथों में मेंहदी होगी।
बिन दहेज दुल्हनों की तरह फिर जलेगा आदमी।
होंगे नये शब्द ‚नये नारे‚ नया सब होगा।
शोषण से सालभर पर‚ फिर गलेगा आदमी
फिर यहाँ शुभकामनाओं का लेना–देना होगा।
फिर यहाँ सालभर बुरी खबरें सुनेगा आदमी
— अरुण कुमार प्रसाद