!! आदमी का क्या भरोसा !!
!!** ग़ज़ल **!!
2122/2122/2122/212
चार दिन की जिंदगी है, कब जुदा हो जायेगा,
वो समझता है ज़माने का ख़ुदा हो जायेगा।
जाने कब रुसवा करे वो दिल तुम्हारा तोड़ दे,
बावफ़ा तुम हो तो हो, वो बेवफ़ा हो जायेगा।
आइने को सामने रख कर कोई अंजाम दो,
क्या ग़लत है, क्या सही, सब फ़ैसला हो जायेगा।
अब ज़माने में किसी के पास फुरसत है कहाँ,
चार पल ग़र साथ बैठें तो मज़ा हो जायेगा।
“दीप” इस क़ातिल समय में भी मुहब्बत बाँट लो,
आदमी का क्या भरोसा, कब ख़फा हो जायेगा।
दीपक “दीप” श्रीवास्तव
महाराष्ट्र