ग़ज़ल
इतनी आसानी से फंदे में नहीं आएगी।
तेरी किस्मत तेरे क़ब्ज़े में नहीं आएगी।
इसको किरदार में तुम अपने सजा कर रख्खो।
ये शराफत है ये बटवे में नहीं आएगी।
एहतेराम अपने बड़ों का न करेगा कैसे।
मेरी आदत मेरे बेटे में नहीं आएगी??!!
घर से निकलो तो दुआ घर के बड़ों से ले लो।
फिर बला कोई भी रस्ते में नहीं आएगी।
हक़ बयानी मेरे पुरखों की है दौलत ए रक़ीब।
ये विरासत तेरे हिस्से में नहीं आएगी।
गोलियाँ खा ले दवाख़ाने बदल ले मोहसिन।
ज़िन्दगी अब तेरे झांसे में नहीं आएगी।
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी