ग़ज़ल
ग़ज़ल
काफ़िया-आओ
रदीफ़- ग़ैर मुरद्दफ़
212 212 212 2
ज़िंदगी में सदा मुस्कराओ।
ग़म को हँसकर हमेशा छुपाओ।
मंजिलें तो मिलेंगी हमें पर
हौंसला ग़र जरा तुम बढ़ाओ।
नाम हो जाए तेरा जगत में
कुछ अनोखा हमें कर दिखाओ।
कर सको कर्म अच्छे करो तुम
पाप में हाथ ना यूँ बटाओ।
है परिश्रम सफलता कि कुंजी
छल कपट से न दौलत कमाओ।
ना करो भेद तुम सुत सुता में
बेटियों को भी’ शिक्षा दिलाओ।
बन सको नेक सज्जन बनो तुम
बेवज़ह यूँ न सबको सताओ।
भर सको प्रेम भर दो दिलों में
नफ़रतें आप दिल से मिटाओ।
अभिनव मिश्र अदम्य
शाहजहाँपुर, उ.प्र.