ग़ज़ल
हो के वो बे क़रार आँखों में
देखता बार – बार आँखों में
जिस घड़ी वो जुदा हुआ मुझसे
अश्क़ थे बेशुमार आँखों में
बारहा दिल मेरा तो दिलबर के
ढूँढता आबशार आँखों में
दिल ये मदहोश हो गया मेरा
इस तरह था ख़ुमार आँखों में
वो न आएगा लौट कर लेकिन
अब भी है इन्तिज़ार आँखों में
इस तरह चुभ रहा हूँ मैं उसको
जैसे चुभता हो खार आँखों में
जबसे नज़रो में बस गया प्रीतम
दिखता परवरदिगार आँखों में
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)