ग़ज़ल
कतरनें याद सिये जाते हैं
कुछ नहीं और तो जिये जाते हैं
कोई रिश्ता ही कहाँ लाज़िम है
रस्मे तस्लीम किए जाते हैं
जाने कब तक ये हमे ज़िन्दा रक्खें
ज़हर हर घूँट पिए जाते हैं
तुम उठाए हो ये दिल को कब से
गर कहो तुम तो लिए जाते हैं
बेरुख़ी पे मेरे क्यों अब शिक़वा
जो मिला है वो दिए जाते हैं
©®निकीपुष्कर