ग़ज़ल
बाहर से सब सुनहरा है
भीतर दुख इक गहरा है…..
महफिल महफिल हँसता जो
दिल मे लेकर सहरा है………
बदन उमर की गाड़ी से निकला
दिल सोला नुक्कड़ पे ठहरा है……
मन उड़ता-फिरता पंछी है…..
जिस्म लगे इक पिंजरा है………
ख़्वाब भी कैसे आएँ अब
नींदों पर भी पहरा है……..
उसको दिखता,न वो सुनता है
पापी जग अंधा, बहरा है……..
#निकीपुष्कर#